अमरीश पुरी की जीवनी |Amrish puri Biography|द विलेन अमरीश पुरी
अमरीश पुरी जी की जीवनगाथा|अमरीश पुरी जी रोचक बाते
अमरीश पुरी
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- अमरीश पुरी (23 जून 1932– 12 जनवरी 2004) चरित्र अभिनेता मदन पुरी के छोटे भाई अमरीश पुरी हिन्दी फिल्मों की दुनिया का एक प्रमुख स्तंभ रहे है।
- अभिनेता के रूप निशांत, मंथन और भूमिका जैसी फ़िल्मों से अपनी पहचान बनाने वाले श्री पुरी ने बाद में खलनायक के रूप में काफी प्रसिद्धी पायी।
- उन्होंने 1984 में बनी स्टीवेन स्पीलबर्ग की फ़िल्म “इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ़ डूम” (अंग्रेज़ी- Indiana Jones and the Temple of Doom) में मोलाराम की भूमिका निभाई जो काफ़ी चर्चित रही।इस भूमिका का ऐसा असर हुआ कि उन्होंने हमेशा अपना सिर मुँडा कर रहने का फ़ैसला किया।
- इस कारण खलनायक की भूमिका भी उन्हें काफ़ी मिली। व्यवसायिक फिल्मों में प्रमुखता से काम करने के बावज़ूद समांतर या अलग हट कर बनने वाली फ़िल्मों के प्रति उनका प्रेम बना रहा और वे इस तरह की फ़िल्मों से भी जुड़े रहे।
फिर आया खलनायक की भूमिकाओं से हटकर चरित्र अभिनेता की भूमिकाओं वाले अमरीश पुरी का दौर। और इस दौर में भी उन्होंने अपनी अभिनय कला का जादू कम नहीं होने दिया फ़िल्म मिस्टर इंडिया के एक संवाद “मोगैम्बो खुश हुआ” किसी व्यक्ति का खलनायक वाला रूप सामने लाता है तो फ़िल्म DDLJ का संवाद “जा सिमरन जा – जी ले अपनी ज़िन्दगी” व्यक्ति का वह रूप सामने लाता है जो खलनायक के परिवर्तित हृदय का द्योतक है। इस तरह हम पाते है कि अमरीश पुरी भारतीय जनमानस के दोनों पक्षों को व्यक्त करते समय याद किये जाते है
जन्म– 23 जून 1932 नवांशहर, पंजाब, ब्रिटिश इंडिया
मौत-12 जनवरी 2005 (उम्र 72)मुंबई, महाराष्ट्र, भारत
पेशा-अभिनेता
कार्यकाल-1970–2005
जीवनसाथी-उर्मिला दिवेकर (1957–2005)
बच्चे-राजीव पुरी (बेटा)नम्रता (बेटी )
अमरीश पुरी का फिल्मी सफर
अमरीश पुरी ने सदी की सबसे बड़ी फिल्मों में कार्य किया। उनके द्वारा शाहरुख खान की हिट फिल्म “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे” में निभाये गए “बाबूजी” के किरदार की प्रशंसा सर्वत्र की जाती है। उन्होंने मुख्यतः फिल्मो में विलेन का पात्र निभाते देखा गया है।
1987 में बनी अनिल कपूर की मिस्टर इंडिया में उन्होंने “मोगैम्बो” का किरदार निभाया जो कि फिल्म का मुख्य खलनायक है। इसी फिल्म में अमरीश का डायलॉग “मोगैम्बो खुश हुआ” फिल्म-जगत मेंं प्रसिद्ध है
अमरीश पुरी का व्यक्तिगत जीवन
पढ़ाई
अमरीश पुरी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई पजाब से की। उसके बाद वह शिमला चले गए। शिमला के बी एम कॉलेज(B.M. College) से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा। शुरुआत में वह रंगमंच से जुड़े और बाद में फिल्मों का रुख किया। उन्हें रंगमंच से उनको बहुत लगाव था। एक समय ऐसा था जब अटल बिहारी वाजपेयी और स्व. इंदिरा गांधी जैसी हस्तियां उनके नाटकों को देखा करती थीं। पद्म विभूषण रंगकर्मी अब्राहम अल्काजी से 1961 में हुई ऐतिहासिक मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी और वे बाद में भारतीय रंगमंच के प्रख्यात कलाकार बन गए
करियर
अमरीश पुरी ने 1960 के दशक में रंगमंच की दुनिया से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। उन्होंने सत्यदेव दुबे और गिरीश कर्नाड के लिखे नाटकों में प्रस्तुतियां दीं। रंगमंच पर बेहतर प्रस्तुति के लिए उन्हें 1979 में संगीत नाटक अकादमी की तरफ से पुरस्कार दिया गया, जो उनके अभिनय कॅरियर का पहला बड़ा पुरस्कार था।
अमरीश पुरी के फ़िल्मी करियर शुरुआत साल 1971 की ‘प्रेम पुजारी’ से हुई। पुरी को हिंदी सिनेमा में स्थापित होने में थोड़ा वक्त जरूर लगा, लेकिन फिर कामयाबी उनके कदम चूमती गयी। 1980 के दशक में उन्होंने बतौर खलनायक कई बड़ी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी। 1987 में शेखर कपूर की फिल्म ‘मिस्टर इंडिया में मोगैंबो की भूमिका के जरिए वे सभी के जेहन में छा गए। 1990 के दशक में उन्होंने ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे ‘घायल’ और ‘विरासत’ में अपनी सकारात्मक भूमिका के जरिए सभी का दिल जीता।
अमरीश पुरी ने हिंदी के अलावा कन्नड़, पंजाबी, मलयालम, तेलुगू और तमिल फिल्मों तथा हॉलीवुड फिल्म में भी काम किया। उन्होंने अपने पूरे कॅरियर में 400 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया। अमरीश पुरी के अभिनय से सजी कुछ मशहूर फिल्मों में निशांत, गांधी, कुली, नगीना, राम लखन, त्रिदेव, फूल और कांटे, विश्वात्मा, दामिनी, करण अर्जुन, कोयला आदि शामिल हैं। दर्शक उनकी खलनायक वाली भूमिकाओं को देखने के लिए बेहद उत्साहित होते थे।
उनके जीवन की अंतिम फिल्म ‘किसना’ थी जो उनके निधन के बाद वर्ष 2005 में रिलीज़ हुई। उन्होंने कई विदेशी फिल्मों में भी काम किया। उन्होंने इंटरनेशनल फिल्म ‘गांधी’ में ‘खान’ की भूमिका निभाई था जिसके लिए उनकी खूब तारीफ हुई थी। अमरीश पुरी का 12 जनवरी 2005 को 72 वर्ष के उम्र में ब्रेन ट्यूमर की वजह से उनका निधन हो गया। उनके अचानक हुए इस निधन से बॉलवुड जगत के साथ-साथ पूरा देश शोक में डूब गया था। आज अमरीश पुरी इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी यादें आज भी फिल्मों के माध्यम से हमारे दिल में बसी हैं
अमरीश पुरी के बारे में कुछ रोचक बाते
- अमरीश पुरी ने हिंदी के अलावामराठी, कन्नड़, पंजाबी, मलयालम, तेलुगू और तमिल फिल्मों तथा हॉलीवुड फिल्म में भीअपने अभिनय का लौहा मनवा चुके हैं.
- फिल्मों के ऑफर आने लगे तो अमरीश पुरी ने कर्मचारी राज्य बीमा निगम की अपनी करीब 21 साल की सरकारी नौकरी छोड़ दी थी.
- अमरीश पूरी के जीवन की आखरी फिल्म ‘किसना’ थी, जो उनके निधन के बाद वर्ष 2005 में रिलीज हुई थी.
- अमरीश पुरी ने अपने फ़िल्मी करियर की ‘शंततु! कोर्ट चालू आहे’ इस शुरुआत मराठी सिनेमा से की. 1967 में आई इस फिल्म में अमरीश ने एक अंधे का किरदार अदा किया था, जो रेलवे कम्पार्टमेंट में गाने गाता है
- अमरीश पुरी हिंदी फिल्मों के सबसे महंगे विलेन थे. कहा जाता है कि एक फिल्म के लिए 1 करोड़ रुपये लेते थे.और अगर डायरेक्टर परिचित होता था तो फीस कुछ कम कर देते थे.