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इन देशों ने भारत को छोड़ा पीछे भारत क्यों खुशहाल देश नही माना जाता

भारत इन देशों से पीछे क्यों भारत के लोग इतने दुखी क्यों है

नमस्कार दोस्तों! इस आर्टिकल के माध्यम से आज हम आपको बताने जा रहे हैं भारत खुशहाल देश क्यों नहीं है, खुशहाली के मामले में ये देश भी छोड़ चुके है भारत को छोड़ चुके हैं पीछे

बांग्लादेश के लोग भारत के लोगो से है अधिक खुशहाल

विश्व गुरु को कैसा होना चाहिए? जैसा भी हो, वह कम से कम इस लायक तो होना ही चाहिए कि पढ़-लिख सके। लेकिन भारत शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में इलाके के दूसरे देशों से पिछड़ रहा है।

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने स्वाति नारायण की आने वाली किताब ‘Unequal: Why India lags behind its neighbours’ की प्रस्तावना लिखी है।

द्रेज ने लिखा है कि लाइफ एक्सपेक्टेंसी, फर्टिलिटी, नवजात शिशुओं की मृत्यु दर, साफ-सफाई, स्कूलों में बच्चों के दाखिले और लैंगिक समानता के मामले में बांग्लादेश भारत को काफी पहले पीछे छोड़ चुका है।

शुरू में यह बात विचित्र सी लगी, लेकिन अंतर बढ़ता गया। इससे भारत के लिए काफी असहज करने वाली हालत बन गई।

बांग्लादेश की बढ़त के लिए उसकी कुछ खासियतों को जिम्मेदार बताया गया। जैसे कि वहां एनजीओ बेहतर काम करते हैं और स्वास्थ्य के मामले में सरकार ने दमदार कदम उठाए।

अब तो नेपाल भी हमसे आगे

अब तो नेपाल भी भारत से आगे निकलता दिख रहा है, जिसकी प्रति व्यक्ति आय भारत के आधे पर है। जिन बच्चों का वजन कम रह जाता है

और जिनका कद नहीं बढ़ पाता, उनकी संख्या भारत में अभी 32 प्रतिशत और 35 प्रतिशत है। लेकिन नेपाल में आंकड़ा भारत से कम है। वहां ऐसे 24 प्रतिशत और साढ़े 31 प्रतिशत बच्चे ही हैं।

बांग्लादेश में तो इससे भी कम यानी 23 प्रतिशत और 28 प्रतिशत का आंकड़ा है। नेपाल हमारे बिहार राज्य के बगल में ही है।

बिहार में अंडरवेट और स्टंटेड बच्चों का प्रतिशत 41 और 43 है। यही हालत स्वास्थ्य और शिक्षा के कई दूसरे मानकों के बारे में भी दिखती है।

भारत के साथ आखिर मसला क्या है, क्यों नही है भारत खुश

यहां जिस बात से सबसे ज्यादा परेशानी है, वह है जाति प्रथा। किसी न किसी रूप में यह हमारे मुस्लिम पड़ोसी देशों में भी है। जातिगत असमानता हर तरह की असमानता की जड़ है। चाहे बात आमदनी की हो या लिंग, क्षेत्र और भाषा की, हर तरह की असमानता की जड़ में जातिगत असमानता होती है। ये असमानताएं आपस में एक-दूसरे को बढ़ाती हैं। इसके चलते खाई और गहरी होती जाती है।

 

लिहाजा जो सबसे अगड़ी जातियां और दूसरे समूह हैं, वे तेजी से आगे बढ़ते रहते हैं, वहीं निचले पायदान पर पड़े लोग शिक्षा और स्वास्थ्य के सिस्टम के साथ फंसे रहते हैं।

क्योंकि सिस्टम ठीक से काम नहीं करता। इसका नतीजा क्या हुआ है? भारतीय समाज का जो ऊपरी तबका है, वह वर्ल्ड क्लास है। यह इंफॉर्मेशन टेक्नॉलजी के मामले में वैश्विक शक्ति बन चुका है। लेकिन जो निचले तबके हैं, वे पीछे छूटते जा रहे हैं।

सबसे निचले तबके का हाल तो ट्रैजेडी जैसा है। आमतौर पर कहा जाता है कि जातिवाद में सबसे ज्यादा उलझा राज्य बिहार है। यह बात बिहार की बेहद कम प्रति व्यक्ति आय और दूसरे सोशल इंडिकेटर्स से झलकती है।

अधिकतर शिक्षक अगड़ी जातियों के हैं। तमाम अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि इनमें से कई शिक्षक कथित निचली जातियों के बच्चों के बारे में अच्छा नजरिया नहीं रखते।

इन बच्चों को पढ़ाना भी कठिन होता है क्योंकि उनके माता-पिता अशिक्षित होते हैं, घर में किताबों की तंगी होती है, स्कूल में दाखिले के समय वे बच्चे दबे-दबे से होते हैं और प्राइवेट ट्यूटर की सुविधा तो उनके लिए आसमान से तारे तोड़ लाने जैसी बात होती है।

स्कूलों के कठिन पाठ्यक्रम के चलते मुश्किल और बढ़ जाती है। ऐसे में शिक्षकों के लिए ज्यादा आसान यही होता है कि वे अमीर परिवारों और उन बच्चों पर फोकस करें, जिन्हें आसानी से पढ़ाया-सिखाया जा सकता है। वे दूसरों को नजरंदाज कर देते हैं, खासतौर से ततब, जब ये दूसरे सामाजिक रूप से कुछ खास हैसियत न रखते हों।

लेकिन फिर सवाल उठता है कि नेपाल में भी तो हिंदू हैं, जाति के चलते उसे भी इसी तरह की मुश्किल क्यों नहीं हुई? इसका जवाब अलग जातिगत संरचना और संस्कृति में है।

यह नेपाल में ही नहीं, बल्कि हमारे उत्तराखंड, हिमाचल और सिक्किम जैसे हिमालय की गोद में बसे राज्यों में भी दिखती है। 1950 में ये तीनों राज्य पिछड़े थे। बहुत कम सड़कें थीं।

अस्पताल, स्कूल या बिजली की सुविधा वाले इलाके भी गिनती के थे। फिर भी इन राज्यों में हालात भारत के दूसरे राज्यों के मुकाबले तेजी से सुधरे। अब तो कुछ सोशल इंडिकेटर्स के मामले में ये बेहतरीन हो चुके हैं।

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में साक्षरता दर 82 प्रतिशत, उत्तराखंड में 79 प्रतिशत और सिक्किम में 81 प्रतिशत थी।

भारत का राष्ट्रीय औसत 74 प्रतिशत का ही था। बिहार में 62 और उत्तर प्रदेश में 68 प्रतिशत की साक्षरता दर थी। फीमेल लेबर पार्टिसिपेशन की बात करें तो हिमाचल प्रदेश में यह 63 प्रतिशत, सिक्किम में 58 प्रतिशत और उत्तराखंड में 30 प्रतिशत थी। लेकिन यूपी में आंकड़ा 17 और बिहार में 9 प्रतिशत का ही था।

 

 

 

 

 

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